गुरदासपुर में बटाला शहर के रिहायशी इलाके में शासन-प्रशासन की नाक के नीचे अवैध पटाखा फैक्टरी चलती रहे और 23 लोगों की मौत के बाद प्रशासन की आंख खुले, इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। इस घटना के बाद सारा तंत्र कठघरे में खड़ा हो जाता हैबावजूद इसके कि पटाखा फैक्टरी में लापरवाही के चलते पहले भी विस्फोट हो चुका था और एक व्यक्ति की जान चली गई थी। पहले हुए धमाके से भी शासन-प्रशासन की कुंभकर्णी नींद नहीं खुली। स्थानीय लोगों द्वारा बार-बार जान को खतरा होने की आशंका जताये जाने के बावजूद प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया, जिसकी परिणति करीब दो दर्जन लोगों की मौत के रूप में सामने आईदेश की ज़म्मेदार लोगों को ध्यान देना होगा कि देश में किश कदर का प्रदूषण है और आगे न बढ़े इस लिए पटाखा बनाने वालों और बेचने वालों नियामों का पलन करायें तभी कुछ हो सकता है। आप ने ऊपर एक पुराना समाचार पढ़ा है और इससे ऐसी घटना भी नही होगी। दरअसल, जिन विभागों को जांच-पड़ताल और कार्रवाई का जिम्मा दिया गया, वे अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति करके खामोश हो जाते हैं। आखिर कौन है इन बेगुनाहों की मौत का जिम्मेदार? स्थानीय प्रशासन, पुलिस, नगर काउंसिल के अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है। आखिर गंभीर खतरे को अनदेखा करके क्यों अवैध पटाखा फैक्टरी को चलने दिया गया। जिला प्रशासन भी अपने दायित्वों की अनदेखी के आरोपों से बच नहीं सकता। क्यों समय रहते ज्वलनशील पदार्थों से पटाखों के निर्माण से जुड़े कायदेकानूनों का अनुपालन नहीं कराया गया। क्षेत्र का जनप्रतिनिधि भी अपनी जवाबदेही में कोताही से नहीं बच सकता। चुनाव के वक्त लोगों को सब्जबाग दिखाने वाले नेताओं का फर्ज है कि लोगों के जीवन से जुड़े खतरों को गंभीरता से लें। ऐसा नहीं हो सकता था कि क्षेत्र के विधायक को इस अवैध पटाखा फैक्टरी के चलने की जानकारी न हो। कुल मिलाकर शासन-प्रशासन की काहिली के चलते निर्दोष लोगों को असमय मौत के मुंह में जाना पड़ा है। सवालिया निशान राज्य सरकार पर भी लगता है। क्या उसका दायित्व हादसे के बाद मुआवजा बांटने और 'दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा' का जुमला दोहराना ही है? बटाला में अवैध पटाखा फैक्टरी का दो दशक से चलते रहना बताता है कि शासन व पुलिस का खुफिया तंत्र पूरी तरह से नाकाम रहा है। दो दशक में कई सरकारें आईं-गईं, तमाम अधिकारी आए गए। किसी ने यह सोचने की जुर्रत नहीं की कि भीड़भाड़ वाले रिहायशी इलाके में विस्फोटक सामग्री बनाने वाली फैक्टरी कैसे चल रही है। हर साल दीवाली पर पटाखों की आपूर्ति करने वाली फैक्टरियों में हादसे होने और श्रमिकों के मारे जाने की खबरें सारे देश से आती हैं। मगर इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने की कोई नियामक व्यवस्था होती नजर नहीं आती। थोडा-बहत मआवजा देकर कर्तव्य कीइतिश्री कर दी जाती है। कुछ समय बाद फिर सारे नियम- कानून ताक पर रखकर पटाखे बनाने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है। इस मामले में आपराधिक लापरवाही दिखाने वाले जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करके सख्त सजा दी जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी कोताही बरतने वाले अधिकारियों के लिये सजा नजीर बन सके। दरअसल, ऐसा होता नहीं है। कुछ समय तक मीडिया में मामला गर्म रहने तक बयानबाजियों का दौर जरूर चलता है।?जांच के आदेश होते हैं। छोटे-मोटे कर्मचारी नप जाते हैं। असली मुजरिम कुछ वक्त बाद फिर से पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं।कभी न खत्म होने वाली कहानी फिर दोहरायी जाती है।
अवैध पटाखा