भारतखंडे आर्यावर्ते जूता पुराणे प्रथमो अध्यायः । मित्रों! अब तो आप मेरा इशारा समझ गए होंगे, क्योंकि आप बेहद अक्लमंद और हुनरमंद हैं। आजकल जूता यानी पादुका संस्कृति हमारे संस्कार में बेहद गहरी पैठा बना चुकी है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए हम आपको इसकी महत्ता बताने जा रहे हैं। कहते हैं कि जूता है तो सबकुछ मुमकिन है। हमारी देशी-विदेशी राजनीति में जूते का जलवा कायम है। आजकल राजनीति में बात से नहीं जूते से बात बनती हैं। बचपन में हमने भी बाबूजी के कई जूते खाए हैं ।मेरी हर शरारत पर जूते की मिसाइलें टपकती थी। मीडिया में जूते की सर्जिकल स्ट्राइक छा गयी है। सोशल मीडिया पर जितनी एयर स्ट्राइक टीआरपी नहीं जुटा पाई, उससे कहीं अधिक नेताओं के जूतम पैजार पर मिल चुकी है। यह टीवी चैनलों पर टीआरपी बढ़ाने का भी काम कर रहा है। कहते हैं कि जूते से व्यक्ति की पहचान होती है और गहर जूता जापानी हो तो फिर क्या कहने । यह वह महाप्रसाद है जो खाए वह भी पछताए ना खाए वह भी। मीडिया युग में जूते से पिटने वाला बेहद सौभाग्यशाली और टीआरपी वाला माना जाता है। कितने तो जूते खा कर ही राजनेता बन गए। राजनीति में कहावत भी है कि जिसने जूता नहीं खाया वह कुछ भी नहीं कर पाया हाल के जूताकांड के बाद टीवी आंख गड़ाए पत्नी ने कहा देखो, जी! तुम हमारे बेलन से रोज पीटते हो, लेकिन टीवी वाले तुम्हें घास तक नहीं डाली, वो देखा दोनों नेता किस तरह क्रिकेट मैच की तरह हैट्रिक लगा रहे हैं। एक पीट कर तो दूसरा पिटवा कर। कई लोग तो जूता पहन कर भी महान बन गए। कितनों के पुतलों को भी यह सौभाग्य मिला। विरोधियों को क्या कहें, उन्हें तो शर्म आती नहीं, वह एयर और शू स्टाइक में अंतर नहीं कर पाते। अब नारा लगाते फिर रहे है कि जता है तो सबकछ ममकिन है।सच कहं जता पराण की कथा किसी परमार्थ से कम नहीं है
राजनीति का जूता पुराण, कहावतों से जुड़ा है