दुख, शोक जो कुछ भी आ पड़े, धैर्यपूर्वक सब सहो ; होगी सफलता क्यों नहीं, कर्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।' सूत्र को चरितार्थ कर दिखाने वाली दुर्ग के संभागीय जनसंपर्क कार्यालय में कार्यरत, एक सशक्त महिला की जानकारी हमें मिली। जो कभी न थकी, कभी न रुकी, बस ; चलती ही रही करती अपनी जिम्मेदारी को पूरीदुख और मुसीबत में भी जिसे अपनी जिम्मेदारी और अतीत की चिन्ता हो, उसके लिए हर नामुमकिन और असम्भव पल सफलता की ओर अग्रसर करता है। जीवन में जीने की कोई खुशी ना हो तब भी भविष्य में कुछ कर गुजरने की तमन्ना सफलता की इबारत लिखने रोक नहीं सकता है। जी हाँ, यह कहानी संभागीय जनसम्पर्क कार्यालय में सहायक ग्रेड-3 पर बखूबी जिम्मेदारी निभा रही कनक कोमरा की है। श्रीमती कनक कोमरा बालोद जिले की एक सामान्य परिवार की महिला है। जिनका विवाह अल्प आयु मे मात्र 15 वर्ष में कर दिया गया। तब उसे पारिवारिक जिम्मेदारी का एहसास भी न था, और व मात्र 16 वर्ष की उम्र मे बच्चे की माँ बन गयी। 18 वर्ष की बहुत कम उम्र मे ही वह 2 बच्चों की माँ बन गयी। उनके पति को अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों का न ख्याल था, और न ही चेतना। आदत से लाचार उनके पति परिवार की चिन्ता किए बिना अपने में ही मस्त रहते थे। विवाह उपरांत श्रीमती कोमरा के मायके वालो ने भी उनकी सुध लेना छोड़ दियाऐसी हालात मे वह अपने पति के साथ रहने मजबूर थी प्रकृति का दुषचक्र कहे या इम्तिहान की और अग्नि परीक्षा श्रीमती कोमरा मात्र 22 वर्ष मे विधवा हो गई। पति का साथ छूटते ही मुसीबत का पहाड़ मानो टूट पड़ा।
जिम्मेदारियों को बनाया आईना, आज सफलता चरणों में